शनिवार, 14 नवंबर 2009

झारखण्ड विधानसभा चुनाव:इस बार और मिलेगा बद्दतर जनादेश!

पिछले नौ साल मे बने छः मुख्यमंत्रियो के राज्य की दूर्दशा कर दी

विगत नौ साल मे छः मुख्यमंत्री का कारनामा झेल चुके झारखण्ड का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, करीब तीन करोड की आबादी वाले इस बदहाल प्रांत मे यह सबाल गांव की गलियो से लेकर राजधानी रांची की सत्ता के गलियारे मे तैर रहा है. हालांकि इस बार भी भाजपा सबसे बडी पार्टी के रूप मे उभरकर सामने आती दिख रही है,लेकिन इसे सत्ता से कोसो दूर ही रहने की संभावना कही अधिक दिखती है. अगर सत्ता तक पहुंचती भी है तो इसे काफी जोड-तोड की राजनीति करनी पडेगी और तत्पश्चात निर्मित सरकार भी ब्लैकमेकरो की ही मानी जायेगी. हालांकि इस बार अपने गठबंधन के प्रमुख घटक जद यू के विकासपरक नेता व पडोसी बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को स्टार प्रचारक बनाने का लाभ मिलने की काफी उम्मीद है.

अनुमानतः 65 फीसदी भू-भाग पर भयंकर उग्रवाद समेटे इस कुशासित प्रदेश मे सत्ता का दुसरी प्रबल दावेदार जेवीम के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के के साथ गठबन्धन कर चुनाव मैदान मे उतरी कांग्रेस है. इस गठबन्धन से उसका प्रदर्शन पिछले चुनाव की तुलना मे कितना सुधरेगी, यह चुनाव बाद ही पता चल पायेगा. क्योकि उसने भाजपानीत अर्जून मुण्डा की सरकार को गिराकर एक निर्दलीय मधु कोडा की सरकार बनाई और फिर उसे हटाकर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को पहले मुख्यमंत्री बनाया और बाद मे एक सोची समझी रणनीति तमाड विधान सभा उप चुनाव मे हराकर मुख्यमंत्री पद से हटाया, यह बात किसी से छुपी नही है. खासकर मधु कोडा के शासनकाल मे जिस तरह से झारखण्ड को गिरवी रखकर सरकारी खजाने को लूटा गया,इससे कांग्रेस अपना दामन पाक-साफ़ नही रख सकती. उसे गली-मोहल्ले तक जबाब देना होगा. इसका खामियाजा जेवीएम पार्टी और उसके नेता बाबूलाल मरांडी को भी भुगतना पडेगा. उनसे भी लोग ये सवाल खूब करेगे कि अखिर क्या बात है कि प्रदेश की बदहाली के लिये कांग्रेस को जिम्मेवार होने का ढिढोरे पिटते न अघाने वाले इस मौकापरस्त नेता ने अपनी एकला चलो की राह क्यो बदल ली? झारखण्ड मे डोमिसाईल लागू करने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की कुर्सी खोने तथा पुनः पुराना तरजीह न मिलने के कारण भाजपा छोड जेवीम नामक नई पार्टी बनाने वाले इस नेता के प्रति राज्य की करीब 47% आबादी को भय है कि कांग्रेस कही इन्हे यहा का राज ठाकरे न बना डाले.

अब सबाल जहा सता के तीसरे दावेदार झामुमो सुप्रीमो शिबु सोरेन का है तो सता के खातिर उन्होने पिछले डेढ दशको से जिस तरह से पेंडुलम बनने का कार्य किया है और केन्द्र सरकार मे मंत्री तथा कुछ दिनो तक मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी भी यह कलई खुल गई है कि वे प्रदेशहित से ज्यादा स्वहित को प्रशय देते है. ऐसे भी अब उनमे पहले जैसा वे तेवर नही रहे जिसके बल वे आदिवासियो के कद्दावर नेता माने जाते थे. फिर भी इन्हे आसन्न चुनाव मे इतनी सीटे अवश्य मिलने की संभावना है कि उनके समर्थन या उनके नेत्रित्व के वगैर सरकार बनाने वालो को काफी एडी-चोटी एक करना होगा.

राजद सुप्रीमो लालू यादव भी यहा अपनी ताकत बढाने की पूरजोर कोशिश करेगे. यदि वे अपनी पूर्व के प्रदर्शन को दोहरा ले तो एक बार फिर किंगमेकर की भूमिका मे नजर आ सकते है.

ऐसे तो बन्धु तिर्की,एनोस एक्का,मधु कोडा जैसे निर्दलियो की हेकडी इस चुनाव के बाद समाप्त होनी तय है.लेकिन आजसू सुप्रीमो व युवातुर्क नेता पूर्व होम मिनिसटर सुदेश मह्तो ने जिस तरह से अन्य दलो के नेताओ को मिलाकर एक टीम चुनाव मैदान मे उतारा है. पूरी संभावना है कि सता की सरंचना इनके आसपास भी घुमेगी.

बहरहाल, सच पूछा जाय तो झारखण्ड मे हर जगह अभी चुनाव से कही अधिक चर्चा मधु कोडा लूटराज-कांड की चल रही है.जिसे हमाम मे सब नंगे रहे राजनीतिक दलो ने भी मतदाताओ के बीच अपना दामन पाक-साफ बताने के लिये सबसे प्रमुख मुद्दा बना लिया है.

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