गुरुवार, 17 जून 2010

दैनिक प्रभात खबर की यह कैसी पत्रकारिता

संलग्न खबर को ध्यान से देखिये-पढ़िए. यह क्या है-समाचार या विज्ञापन? रांची से प्रकाशित दैनिक प्रभात खबर के आज के अंक में मुख पृष्ठ पर प्रकाशित इस स्वरुप को देखने व समझाने से विज्ञापन नजर आता है लेकिन,प्रधान संपादक हरबंश जी के नजर में यह एक प्रमुख खबर है. इस सन्दर्भ में जब मैंने निवेदक झारखंड अल्टरनेटिव डेवलपमेंट फोरम के पी.वर्मा ने भी बताया कि यह विज्ञापन नहीं अपितु एक दिन पूर्व आयोजित प्रेस कांफ्रेस में जारी प्रेस विज्ञप्ति है. ऐसे प्रदेश में झारखंड अल्टरनेटिव डेवलपमेंट फोरम के बारे में अच्छे-अच्छे लोगों को कुछ भी पता नहीं है. इंटरनेट पर सर्च करने के बाद पता चला कि इस फोरम का एक http://jharkhandalternative।blogspot.com/ नामक एक ब्लॉग है और फोरम के सदस्यों में वे लोग(तत्व) शामिल हैं,जो कहीं न कहीं कट्टरता की जमीन पर झारखण्ड की ताजा बदहाली के लिए जिम्मेवार हैं. खैर बाजारवाद के इस नए युग में पत्रकारिता का इतना घिनौना रूप कि मन पीड़ा से भर जाता है. ”अखबार नहीं आंदोलन” और “प्रदेश में न. वन अखबार” का भ्रम पाल रहे दैनिक प्रभात खबर के सर्वोसर्वा प्रधान संपादक हरवंश जी में बाहरी-भीतरी के दुर्गुण पहले से ही रहे हैं.दैनिक हिंदुस्तान,दैनिक जागरण के बाद उनमें ये काफी बढ़ गये और अब देश के एक बड़े अखबार दैनिक भास्कर के ताम-झाम ने एक तरह से उन्हें मानसिक दिवालिएपन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.इन पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वर्ग-क्षेत्रवाद की छत्रछाया में पत्रकारिता को “कोठे का धंधा” बना देना कोई इनसे सीखे. फ़िलहाल हम तो सिर्फ इतना ही कहेगें कि प्रभात खबर को हाथ में लेकर पहले अपनी अंतरात्मा टटोलिये हरबंश जी.

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