रविवार, 8 नवंबर 2009

प्रतिभा को स्थानीयता की सीमा मे न समेटे

देश के दो बडे राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस अपनी ताकत बढाने के लिये जिस तरह के गन्दा खेल खेल रही है,वह आने वाले दिनो मे क्या स्वरूप लेगा।यह तो भविष्य की बात है। लेकिन भाजपा ने पहले बाल ठाकरे और अब शिवराज को आगे कर जिस भावना को भडका रही है तथा कांग्रेस ने जिस तरह राज ठकरे के पिछे खडा होकर बिहार-झारखण्ड-यूपी वालो को लेकर जिस तरह के गन्दा खेल खेल रही है, वह आने वाले दिनो मे क्या स्वरूप लेगा. यह भविष्य की बात है. लेकिन इतना तय है कि भाजपा ने पहले बाल ठाकरे और अब शिवराज को अचानक तथा कांग्रेस ने राज ठकरे को आगे कर देश को जो मैसेज दे रही है , वह उन दोनो दलो के हित मे नही है. अब मै जो लिखने जा रहा हू ,वह उनलोगो को समझने के लिये काफी होगा जो देशहित से उपर स्थानियता को मानते है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक - पश्चिम बंगाल से गुजरात तक के लोगो को सझने के लिये काफी होगा। यदि जो लोग इसे नही समझते है,उन्हे मान लेना चाहिये कि वे मेहनत करने के बजाय भीख मांगने मे विश्वास करते है. कुछ दिन पहले झारखण्ड के एक बडे भाजपा नेता और एक जाने पहचाने कांग्रेस नेता एक नीजि समारोह मे बैठे थे. चर्चा चल रही थी कि झारखण्ड को अलग हुये एक दशक से उपर हो गये. लेकिन बिहारियो के कारण इस राज्य की दुर्गती हो रही है. उन दोनो नेता ने एकमत से कहा कि अभी राज्य के सरकारी गैर सरकारी छेत्र मे वे लोग ही काम कर रहे है. जबकि बंट्बारा के साथ ही सबको बदल देना चाहिये था. जब मैने उनसे पूछा कि क्या झारखण्ड मे इतनी प्रतिभा है , जो पूरी अर्थव्यवस्था को सम्भाल ले. ......मेरे इस पर वे दोनो बंगले झांकने लगे. मेरे कहने का अर्थ यह है कि जहा प्रतिभा की कमी होती है, वहा प्रतिभा पहुंचती ही है. देश–दुनिया के किसी भी हिस्से मे प्रतिभा का सम्मान होनी चाहिये.उसके गुण सीख कर आगे बढना चाहिये. राजनीतिक नेताओ के झांसे मे नही आना चाहिये.

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