मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

मैदान छोड़ कहाँ भागे बाबूलाल मरांडी ?

झारखंड की राजनीति में झाविमो (झारखंड विकास मोर्चा) के संस्थापक अध्यक्ष व सांसद बाबूलाल मरांडी का कोई सानी नहीं है."आपने रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था "वाली कहावत सुनी होगी.श्री मरांडी पहले भी कई मौकों पर ये कहावत चरितार्थ कर चुके है.यदि हम झारखण्ड में आज उत्पन्न ताजा हालात का विश्लेषण करते हैं तो भी वे ही कहावत याद आते है.
वेशक आज झारखण्ड प्रदेश के हालात काफी भयावह है.समूची शासन व्यवस्था नक्सल माफियाओं के हाथ में है.भाजपा-आजसू-जदयू के साथ असहज गठबंधन के बल सत्तासीन झामुमो की "शिबू सरकार" हर मोर्चे पर विफल और सिर्फ खाऊ-कमाऊ साबित है.उधर प्रमुख विरोधी दल कांग्रेस आपस में ही जूतम-पैजार करते नजर आ रही है.इस दल में जितने नेता है,उतने ही गुट. कोई किसी को स्वीकार करने को तैयार नहीं है. केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय भी मात्र हवाई नेता बने हुये है.
ऐसे में झाविमो के बाबूलाल मरांडी की जिम्मेदारी-जबाबदेही काफी बढ़ जाती है. विगत विधानसभा चुनाव में आम जनता ने जिस तरह से उन्हें समर्थन दिया है,उस आलोक में श्री मरांडी एक लापरवाह नेता के रूप में स्पष्ट होते है.जानकार बतातें है कि वे एक लंबे अरसे से विदेश दौरे पर है. वहाँ क्या कर रहे है,किसी को पता नहीं.कहा जाता है कि वे अभी कुछ और समय विदेश में ही रहना चाहते हैं ताकि,उन्हें झारखंड की ताजातरीन वदहाल सूरत का सामना न करना पड़े.

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