सोमवार, 16 नवंबर 2009

झारखण्ड : कौन बनेगा मुख्यमंत्री ?

बाबूलाल मरांडी!
झारखण्ड जैसे बदहाल नव प्रांत की राजनीति मे बाबूलाल मरांडी का कोई सानी नही है.इनके राजनीतिक जीवन के भूतकाल का आंकलन करना उतना ही मुश्किल है,जितना कि भविष्यकाल का. कभी खाली बदन आरसएस की चौकी पर सो कर भाजपा की राजनीति करते थे और आज खुद का संगठन बना कर कांग्रेस के सोफ़ा पर आराम फरमाना चाहते है.
राम मन्दिर जैसे मुद्दो को लेकर भाजपा के झारखण्ड मे एकछत्र सिक्का जमाने मे श्री मरांडी के योगदान को कोई नही भूल सकता.लेकिन यह भी सच है कि भाजपा ने भी अपने इस कद्दावर नेता को इच्छाफल देने मे कोई कोताही नही बरती. जब मजबूरी मे ही सही तात्कालिक बिहारकिंग लालू प्रसाद यादव ने अलग झारखण्ड राज्य का गठन किया तो भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता करिया मुंडा को नजरन्दाज कर सर्वप्रथम बाबूलाल मरांडी को ही मुख्यमंत्री बनाया.जब उन्हे इस पद से हटाया गया तो इसके कारण थे.श्री मरांडी ने झारखण्ड का लालू बनने की लालसा मे डोमिसायल का मुद्दा जिस तरह से छेडा, उससे उससे समूचा प्रदेश स्थानियता वनाम बाहरी की आग मे जल उठा.
ऐसी परिस्थिति मे भाजपा को उन्हे पद से हटाने के अलावे कोई चारा न था. उसके बाद जब केन्द्र मे भाजपानीत सरकार सतासीन हुई,तो पार्टी ने उन्हे कैबनेट मंत्री के पद से नवाजा. बाद मे भी उनकी हैसियत प्रदेश के कद्दावर नेता के रूप मे बनी रही. और आज ये आश्चर्यजनक पहलू है कि दोनो विपरित दिशा मे भाग रहे है.
आसन्न विधानसभा चुनाव मे दो-चार सीटे लाकर मरांडी कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी पर वे पकड बना लेगे, यह कहना बहुत मुश्किल है.वे कुछ हद तक ईमानदार व विकासपरक विचार के माने जाते है और है भी. लेकिन, उनमे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरीखे धैर्य का निरंतर अभाव रहा है. चन्द लोगो से हमेशा घिरे रहना तथा स्थानीयता से प्रेम उन्हे राजनीतिक चौसर से बाहर करती नजर आती है.....................

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