शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

अर्जुन मुंडा का आत्मघाती खेल

झारखंडी नेताओं का कोई सानी नहीं है.बड़े अरमानों के साथ जब बिहार से अलग झारखंड प्रांत का श्रीगणेश हुआ तो माना ऐसा लगा कि प्रचुर श्रमशक्ति एवं वन-खनिज संपदा से परिपूर्ण इस उपेक्षित प्रक्षेत्र का निश्चित रूप से बेहतर कायाकल्प होगा.

लेकिन यह क्या? प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने जिस तरह से "डोमिसाइल" की नीति से यहाँ का ताना-बाना नष्ट किया और समूचे प्रदेश को हिंसा की आग में झोंक दिया था.उसका खामियाजा यहाँ के निरीह लोग आज भी भुगत रहे हैं.उसके आगे के मुख्यमंत्री में निर्दलीय मधु कोड़ा और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगीयों के रिकार्ड लूट की चर्चा मैं नहीं करना चाहूँगा क्योंकि उनमे प्रायः जेल में अपनी करनी का फल भुगत रहे हैं.झारखंड आंदोलन के अगुआ माने जाने वाले नेता शिबू सोरेन की गुरूघंटालगीरी जग जाहिर है.

इधर तीसरी बार एक "बड़े कारपोरेट ग्रुप" की मदद से मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के राज्य में सीएनटी एक्ट को परिभाषित करते हुए जमीन खरीद-बिक्री को लेकर पिछले तीन दिनों तक जो नौटंकी चला और जिसका अभी स्थाई पटाक्षेप नहीं हुआ है.सिर्फ एक माह के लिये स्थगित हुआ है.वह प्रदेश को निश्चित तौर पर रसातल की ओर ले जायेगा और तीन-चौथाई आबादी के बीच आपसी भय-तनाव का माहौल जारी रखेगा.

तीन दिन पूर्व मुंडा सरकार के सचिव ने अचानक सभी जिला मुख्यालयों में अवस्थित भूमि निबंधन कार्यालय को यह लिखित नोटिश भेज दिया कि आदिवासीयों के साथ-साथ पिछड़े वर्ग के लोगों के किसी भी प्रकार के जमीन की खरीद-बिक्री अगड़े जाति के लोग नहीं कर सकते.इसका नतीजा यह हुआ कि राजधानी रांची से लेकर रामगढ़,हजारीबाग,धनबाद,बोकारो से लेकर जमशेदपुर कोडरमा तक निबंधन कार्य रुक गये.हर जगह धरना,प्रदर्शन,आगजनी,तोड़-फोड़ व हिंसा की घटनाएं होने लगी और ७२ घंटों तक ये निर्बाध जारी रहे.

उल्लेखनीय है कि ये सब उस दौरान हुए,जब प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहें है और समूचा प्रांत पेसा क़ानून के तहत हो रहे चुनाव के बीच नक्सली हिंसा की दंश झेल रहा है.वहरहाल,मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने उत्पन्न भीषण समस्या की नजाकत को समझते हुए अपने सचिव के आदेश को एक महीने के लिये स्थगित कर दिया है और कहा कि इसके भीतर समाधान ढूंढ लिया जायेगा.

वर्ष १९०८ यानि १०२ वर्ष पूर्व बने सीएनटी एक्ट की आज आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी क्या प्रासिंगता है ,यह समझ से परे है.यदि है भी तो आज इसका मूल्यांकन नये सिरे से करना जरूरी है. अब यहाँ के पिछडों की तो दूर आदिवासियों की हालत भी १०२ वर्ष पहले जैसा नहीं है.वे सब सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टिकोण से काफी परिपक्व हो गये हैं.वे भलीभांति समझने लगे हैं कि सीएनटी एक्ट उनके सर्वांगीण विकास में वाधक हैं.लेकिन दुर्भाग्य कि यहाँ के लूटेरे नेता वोट की राजनीति के चक्कर में ये नहीं समझ रहे है.

जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के इशारे पर ही सचिव ने जनमानस को नापने के ख्याल एक तरफ नोटिश जारी करवाये और राजनीतिक नज़रिया अपनाते हुये बाद में एक महीने का फौरिक स्थगन आदेश दे दिया है.इन सारे प्रकरण में मुंडा सरकार की नियत साफ़ नज़र नहीं आ रही है और उनके राजनीतिक जीवन सहित भाजपा के लिए भी आत्मघाती कदम साबित होगा,यदि इस समस्या का समुचित समाधान नहीं निकला तो.

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